मेरे मन के कवि: श्री उदय प्रताप सिंह

जहाँ अवतार जन्मे हैं, पले हैं वीर, ऋषि, योगी, कोई ये न समझ बैठे, की अब ये भूमि परती है, यहाँ का हर नया अंकुर, यदि पाला गया ढंग से, नमूना बन के गायेगा, की ये उपजाऊ धरती है.

Wednesday, January 18, 2012

ख्वाहिशों का सिलसिला

Posted by अभिनव at 7:24 AM No comments:
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Thursday, January 12, 2012

फूल से बोली कली ...

Posted by अभिनव at 11:38 AM No comments:
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उदय प्रताप सिंह की कविताओं में बड़ी सरलता से अपने अन्दर सबकुछ समाहित करने की क्षमता है. उनकी कविताएं अरसिक श्रोता के मन में भी काव्य का सितार झंकृत कर देती हैं. उन्हें काव्य पाठ करते हुए सुनना एक ऐसा अनुभव होता है जिसे आप अपने मन में आजीवन संजो कर रख सकते हैं. ज़मीन से जुड़े इस जन कवि की रचनाओं को अंतरजाल पर संगृहीत करने का ये छोटा सा प्रयास है.

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